Monday, 15 July 2019

नन्ही सी एक पगडण्डी...

पहले, मेरे मन की कुछ खूबी थी,
जब उसने प्रेम का ज्वार नहीं जाना था,
तब उस पर न डालते थे कोई असर,
संसार के मेघ,
संसार के मैले पानी में वह कमल था,
पर ऐसा कमल जिसे न पता था अपनी सुगंध
और सुंदरता का, काव्यरहित था वह,
प्रेम आया, तो काव्य आया, सुंदरता आयी,
भूल गया फिर वह अपने को ही,
मीठे मीठे से सपने में लिप्त,
बेहोश होकर चलने लगा, और गिरा जब,
तब सोचा उसने, कुछ तो गलत है,
हाँ, कुछ तो गलत है,
यह प्रेम जो काव्य से भरपूर है,
यह भी पूरा नहीं है,
यह कमल की आकाँक्षा तो करता है,
पर कमल की इसमें कोई विशेषता नहीं है,
फिर खोजा, तो पाया के दो खाई हैं,
एक सपनों की, एक तर्क की,
और नन्ही सी एक पगडण्डी है,
उस पर चलना ही जीवन
की लय में रहना है,
मिठास में भी,
और यथार्थ में भी...


© मनन शील। 


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