Wednesday, 3 July 2019

दो दुनिया..

एक दुनिया है,
जो समय के आगे झुकती है,
जो गिनती है, घुटती है समय में,
उस दुनिया के पास बहुत समय है,
पर फिर भी समय के आगे उसे
झुकना पड़ता है,
इसलिए अकेली प्रेम में मुक्त
नहीं होती वो...

फिर एक दुनिया है,
जो समय को तो देख कर उसका
मजाक उड़ाती है,
एक क्षण में ही सदियाँ जी लेती है,
बहुत मीठी है,
पर बस इतनी ही है,
मिठास और पागलपन, और ज़िन्दगी,
और मौत, सब को लिपटा हुआ
देखती है...

यदि मैं एक वैज्ञानिक और एक कवि
दोनों हो सकूँ, तो मैं पहली दुनिया के
समय में दूसरी दुनिया का असीम
डाल सकता हूँ,
कोशिश है बड़ी, दुस्साहस है,
होगा पर ये होगा,
और फिर सब खिल जायेगा...


© मनन शील।


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