कोई संगीत चलता है....
जितना दूसरे हमसे दूर होते जाते हैं,
उतना ही परमात्मा हमें ज़्यादा प्यार करता है,
अंत में, जब हम उसके प्रेम से भर जाते हैं,
तो पता चलता है, के सब प्रेम उसका ही था,
हम अपने अंदर प्रेम लिए जीते थे,
हमारा कण-कण परमात्मा था,
हम प्रेम थे, और डरते थे,
के कहीं कोई प्रेम न दे
ठोकरें खाते थे,
अकेले नहीं होते थे,
अब, अंदर कोई संगीत
चलता है, जो मग्न करता है,
जो सदा था,
पहले उसकी कभी कभी,
धीमी धीमी
रौशनी-सी सुनती थी,
अब वो निरंतर गुनगुनाता है,
जैसे धूप - सी खिलती हो,
मन में, हृदय में...
धीमी धीमी
रौशनी-सी सुनती थी,
अब वो निरंतर गुनगुनाता है,
जैसे धूप - सी खिलती हो,
मन में, हृदय में...
© मनन शील।
No comments:
Post a Comment