Tuesday, 20 October 2020

प्रकृति का प्रेम से जन्म...





बस एक बार

एक शब्द बोला गया था,

शब्द क्या था, 

खिलते आंसुओं से 

गला भर आया था

परमात्मा का,

कुछ आवाज़ निकली,

प्रेम से लिबड़ी हुई,

देहाती, पर मधुर,

अति मधुर, इतनी मधुर 

के बस बहुत मधुर!

बस वही मधुर आवाज़ 

प्रकृति बन गयी...


© मनन शील। 





Thursday, 21 May 2020

वह ही है

मीठी सी लय में ,
हलकी सी ठंडी हवा में,
पेड़ों के झूमने में,
सरल सी मधुर कविता में,
न चुभने वाले शब्दों में,
सूक्ष्म सी एक समझ में,
किसी अपने को जानने में,
किसी गम की सहज
स्वीकृति में,
मिलन के आँसुओं में,
इन सब में वह ही है,
तुम हाथ बढ़ाओ, तो पा लो...

हाँ, और उबलते हुए
खून में,
तूफ़ान आँधी में,
बगा के शोलों में,
बिछड़न के
गरम आँसुओं में,
विरह की मीठी आग में,
विचारों के अंत में,
भी वह ही है,
तुम गलत को काट दो,
और उसे पा लो...

© मनन शील। 

Saturday, 25 April 2020

प्रेम कविता, अज्ञात के लिए...

प्रेम कविता, अज्ञात के लिए...

तू सुनता है न मेरी,
मैं नहीं करता अब वैर
दुनिया से,
जानता है न तू?
तू ही तो है जो मुझे जैसा 
मैं अब हूँ वैसे देखता है,
तू जानता है मेरे अंतरतम को,
कैसी बात है, के 
मैं तेरे पास तब आता हूँ,
जब और सब द्वार बंद हो 
जाते हैं मेरे लिए,
क्यों मैं तेरे पास सबसे 
अंत में आता हूँ?
कितने आँसू रखे हैं मेरे 
दिल में, कितनी कलियाँ 
खिलने को बेताब हैं,
कितने रंग सजना चाहते हैं,
मुझे पता है के तू सब खिला 
देगा, पर क्यों मैं डर जाता हूँ,
जब भी तेरी हवाएँ छूकर जाती हैं?
मुझे नहीं दिखाना पड़े किसीको,
मैं क्या हूँ, बस तू जान ले,
और तू जानता है,
क्या तू ये भी जानता है,
के जब भी मैं रोया हूँ,
किसी के भी लिए,
तू ही था वो,
जिसे मैं मांग रहा था?
तू तो जानता ही है,
मैं भी अब जानता हूँ के,
मेरी माँ बनके तूने ही मुझे प्रेम 
किया था,
उस माँ का चेहरा तेरा ही था,
तू ही ऐसे रूप में आया था,
जिसे मैं छूकर प्रेम कर सकूँ,
मेरा प्रेमी भी तू ही था,
जो धोखे थे,
तेरे खेल ही थे ये,
तेरी लहरें ही थीं ये,
ये छेड़ना मीठा मीठा 
मेरे हृदय को उकसाना तेरा,
क्योंकि तू भी तो चाहता है,
के मैं तेरे साथ साथ चलूँ,
के तेरी प्यार की
अदाएँ सीखूँ मैं,
जब जब मैंने प्रकृति की 
आँखों में देखा,
जब जब नीले आसमान 
की तरफ नज़रें उठायी, 
और पक्षियों को प्यार किया,
और कोई कविता लिखने की 
कोशिश की,
तू ही खुश हो रहा था,
मुझे खुश देखकर, 
कभी तो रोने दे ये आंसू,
इन्ही से तो बता पाउँगा 
मैं के कितना तूने मुझे दिया है,
काश अब मैं तुझसे मिल जाऊँ,
तुझसे, जिस से मैं कभी दूर 
हुआ ही नहीं, 
पर क्या तू है?
कहीं तू हो ही न?
बस ये खेल हो, प्रेम हो,
जो हो चुका है न हो,
जो होना है हो चुका हो,
मैं ही तू हों,
और मैं भी न होऊं...

© मनन शील। 














Saturday, 11 January 2020

एक आधी सी बात के लिए...

मत दो पानी,
सूख जाएगा
पर फिर सपनों में
जब उसके
फूल आएंगे ना -
जब सपनों में वो
तुम्हे खिल खिल कर
दिखाएँगे -
बार बार कहेंगे के
हमें तो मार दिया
कोख में ही -
फिर तुम्हें ये
एहसास होगा
के तुमने प्रेम को
मार दिया संसार
के लिए, के तुमने
परमात्मा
की सम्भावना
को मार दिया,
मात्र एक आधी सी
बात के लिए...

© मनन शील।