Monday, 1 May 2017

ये नयी कायनात

ये नयी नयी कायनात,
लगता है सपनों से ऊब गयी है,
या फिर, सपनों को जानती ही नहीं है
क्योंकि अभी तो जन्मी है,
मेरे शब्द पुराने हैं,
ये नयी नवेली है,
मेरे शब्द शब्द हैं,
सपनों की धूल से बूढ़े हैं,
ये ज़िन्दगी है
एक नवजात शिशु सी
देखने को आतुर,
जीने को आतुर...


- मनन शील
- 1 मई 2017 

2 comments:

  1. Bahut khoobsurat kavita, Manan. :)
    Simple yet so profound!

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